Wednesday, June 6, 2012

सरकारी खर्चे को वेब साईट पर डाल कर सार्वजनिक किया जाना चाहिए

सोणे  ते मन मोहने पी एम् ने आज कह दिया है की भीषण आर्थिक संकट है \ फासला बहुत है सबको साथ लेकर  चलना  जरूरी है ।इसीलिए में भी इस कालम के जरिये सहयोग करना चाहता हूँ\मौजूदा वक्त में महंगाई और भ्रष्टाचार के आवरण में आपके विकास कार्य  ढक  रहे है इसीलिए बुनियादी सुधारों के रोडमेप में निवेश और कारोबारी माहौल  नामक डिवायस उपयोगी होते हैं मगर इन्हें कारगर बनाने के लिए  खर्चे की पारदर्शिता भी लाना लाजमी है\
   मेरा अनुभव कहता है कि  बजट   बनाते समय फंड्स  की  मांग और फिर   उसका सही इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाना  मौजूदा  वक्त की मांग है \इसीलिए इसमें विशेषतौर पर खर्चे में पारदर्शिता लानी बेहद जरूरी है ।बेशक बड़ी बड़े यौजनाओं से विदेशी पूंजी आने की संभावनाएं बढ  जाती है मगर किये गए को संजो कर रखना भी तो दानिशमंदी का ही एक हिस्सा है।इसीलिए भ्रष्टाचार औ र महंगाई की सुरसा से बचने के लिए उच्च और निम्न स्तरों पर एक साथ  आस्तेरिती [बचत]और ट्रांसपेरेंसी [पारदर्शिता]उपयोगी डिवायस+ टूल्स[ओउजार]हो सकते हैं।
आज कल विभागों में अपनी अपनी वेब साईट  हैं मगर अधिकाँश  अपडेट नहीं रहती ऐसे में सबसे पहले इन्हें अपडेट किया जाना चाहिए उसके बाद विभाग  की आवश्यकता+मांग+ग्रांट+ खर्चे को  बयौरे  बार  दर्शाया जाना चाहिए।इससे आर टी आई का दबाब कम होगा अनावश्यक खर्चे में कटौती होगी जरुरत के मुताबिक़ ही खर्च होगा और भ्रष्टाचार  भी कम होगा   
  देखने में आया है की अनेक विभागों द्वारा विशेषकर सेना की सहायक सेवाओ में बजट की मांग बड़ा चड़ा  कर पेश की जाती है फिर उसे  अनावश्यक या जबरदस्ती केवल बजट को लेप्स होने से बचाने के लिए ही खर्च किया जाता है ।वित्तीय वर्ष के अंतिम माह मार्च में सारा बजट खत्म करने की आपा धापी मची रहती है 
 यौजना आयोग के  मोंटेक  सिंह अह्लुवालिआ ने भी कमोबेश आज यही कह दिया है ।आज  मीडिया में बड़ी चर्चा है की यौजना आयोग में दो  टायलेट्स  के पुनुर्द्धार पर 3500000  रुपये  खर्च   कर दिया गए हैं इस पर  मोंटेक   का जवाब हे की बजट में था लंबित था सो कराया गया ।अब जिस देश की जनता 28/= पर अमीर हो जाती है उस मुल्क में 3500000/= के टायलेट्स  अपने आप में माथे पर  सिलवटें डालते हैं।में मोंटेक जी की काबलियत पर प्रशन चिन्ह लगाने की हेसियत में  नहीं हूँ फिर भी इतना तो जरूर कहना चाहूंगा  की जिस बेबाकी और घमंड में 3500000/=के खर्चे को जष्टिफाई  किया गया है उससे फ्रेंच रिवोलुशन की  याद  हो आई फ्रांस की एतिहासिक क्रान्ति के जो कारण  हमें इतिहास में  पढाए  जाते हैं उनमे से एक है नोबल्स  वर टू  एन्जॉय  एंड अदर्स  तू पे । लेविश्ली  किये जा रहे सरकारी खर्चे और महंगाई+भ्रष्टाचार+मुद्रास्फुर्ति से कमोबेश वोही फ्रांस की क्रांति से पूर्व की स्थिति की याद हो आती है। 
   प्रधान मंत्री के अनुसार देश में आर्थिक संकट है  सो  खर्चे में 10% कटौती की बात कर रहे हैं  ऐसे में टायलेट्स  का खर्चा कथनी और करने में विरोधाभास पैदा करता है ।
    यहाँ में फ़िज़ूल खर्चे की एक और मिसाल देना चाहता हूँ।
मेरठ में रक्षा लेखा विभाग का अपना मेस है इसके जीर्णोधार के लिए 10000000/= से अधिक खर्चा कर दिया गया यह किसी भी उपयोग में नहीं  है सरकारी कोठी खाली है उस पर रखरखाव का खर्चा हो रहा है ।कर्मिओं की  कालोनी में मेस है ।इस सबके बावजूद  23 कमरों का एक नया  आलिशान मेस बनाया गया है\इस पर भी करोड़ों रुपये लगाए जा चुके है शानौशौकत से इसका  उद्दघाटन  भी किया गया 
बेशक इसके लिए ग्रांट है बजट है मगर क्या यह खर्च जायज है \शायद नहीं ।क्योंकि हमारे राष्ट्र पिता  मोहन दास करम चंद  गांधी ने देश की गरीबी देख कर अंग वस्त्र त्याग दिए थे ।देश के पहले  मंत्री जवाहर लाल नेहरू को जब यह बताया गया था की देश वासी झूटा अन्न  खा कर गुजारा कर रहे है तो उन्होंने इस पर स्वयम  शर्म  महसूस की थी   आज लग्जरी खर्चे पर  है मगर सरकारी विभागों में  लेविश्ली  खर्च हो रहा है
 इसीलिए सरकारी खर्चे को वेब साईट पर डाल  कर सार्वजनिक  किया जाना चाहिए  

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