या देवी सर्वभूतेषू प्रक्रति रूपेण संस्थिता ,नमस्तये नमस्तये नमस्तये नमो नमः आज विश्व पर्यावरण दिवस है |इसीलिए आज इस देसी मन्त्र का महत्त्व भी बढ जाता है
ओजोन लेयर में आए छेद को बढने से रोकने के लिए धरती पर हरियाली जरूरी बताई जा रही है |हमारे ग्रन्थों में तो सदिओं पहले ही प्रक्रति की पूजा आवश्यक बताई गई है
प्रक्रति को देवी का स्वरुप देकर पर्यावरण की पूजा की जाती रही है |घर के आँगन में तुलसी+नीम +जामुन+धनिया+पोदीना+कैथा+++लगाए जाते रहे हैं |इन पौधों के चिकित्सीय
गुणों को अब विकसित देशों में भी मान्यता मिलने लगी है |मगर अब दुर्भाग्य से ना तो घर और नाही आँगन ही बच रहे हैं |मौहल्ले बाज़ार बन रहे है और घरों में मल्टी स्टोरी फ्लेट
बनाये जा रहे हैं| खेतों को नष्ट करके फेक्ट्रियां +मॉल बनाये जा रहे है अर्थार्त अपनी सांस्कृतिक+धार्मिक धरोहर को संजो कर आने वाली नस्लों तक पहुँचाने में नाकाम हो रहे हैं|
अब ऐसा नहीं है कि भारतीय अपनी धरोहर से दूर रहना चाहते है क्योंकि आज कल सुबह पार्कों में लगती भीड़ और देसी जड़ी बूटी वाले बाबाओं के पास लगाने वाले जमघट यह बताते है की देसी धरोहर के प्रति अभी भी भूख है यहाँ तक की पैसे देकर भी पार्क में जाने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं है।आजकल औषधियो
वाले पोधों वाले पार्क की मांग बढ रहे है मेरठ में सूरज कुंड पार्क में भी ऐसा ही लैंड स्केप अप्रूव्ड किया गया था मगर अंतिम समय में सुरक्षा कारणों की दुहाई देकर इसे निरस्त कर दिया गया। केंट में विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों की कटाई कराई गई संभवत इसीकी भरपाई के लिए सेना ने मेरठ छावनी में एक लाख पौधे रौपने का लक्ष्य रखा था इसे प्राप्त करने के लिए सेना के सभी संसाधनों का उपयोग भी किया गया लेकिन वास्तविकता में लक्ष्य कोसों दूर है। हमारी सियासत +पश्चिम देशों की नक़ल+ भौतिकतावादी संक्रमण से आम जनता को अपनी धरोहरों से दूर किया जा रहा है। यह ना केवल इस पीडी के साथ धौका है वरन भविष्य के साथ भी विश्वासघात है ।
मगर अपनी जड़ों से दूर होने का खामियाजा तो पिडिओं को भुगतना ही पडेगा |
विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी इस वर्ष ब्राज़ील को दुबारा सौंपी गई है यह कोई मेहरबानी नहीं है वरन इस देश में ग्रीन इकोनोमी में क्रांतिकारी सफलता पाई है इसलिए १९९३ के बाद पुनः मेज़बान बनने का गौरव हासिल कर लिया है|हमारे मुल्क में जहां प्रक्रति की पूजा की जाती रही है वहां प्रक्रति का रोजाना शोषण किया जाने लगा है |कंक्रीट के जंगल बसाने की हौड़ में खेत+ खलिहान+जंगल गायब किये जा रहे है यह ना केवल मानवता के लिए कष्ट कारी है वरन अपनी सांस्क्रतिक +धार्मिक परम्पराओं का अनादर भी है|
गंगा नदी को गंगा माँ का दर्जा दिया गया है मगर आज गंगा की जो स्थिति वह माता अपने बच्चों के हाथों बलात्कार की पीड़ित है ।सरकार ने गंगा के उद्धार के लिए जो धनराशि का आवटन किया था वह भी खर्च नहीं हुआ।
गंगा नदी को गंगा माँ का दर्जा दिया गया है मगर आज गंगा की जो स्थिति वह माता अपने बच्चों के हाथों बलात्कार की पीड़ित है ।सरकार ने गंगा के उद्धार के लिए जो धनराशि का आवटन किया था वह भी खर्च नहीं हुआ।
हमारी सियासत में एक बड़ी बीमारी विज्ञापन छपवाने की है।कोई भी ओकेशन हो विज्ञापन छपवा कर इतिश्री कर ली जाती है ।उत्तर प्रदेश में तो निकाय चुनावों को लेकर आचार संहिता लागू है इसीलिए यहाँ आज विज्ञापन भी नहीं है मगर दिल्ली में मरकजी सरकार ने बड़े बड़े विज्ञापन देकर पर्यावरण दिवस की जानकारी देने की औपचारिकता पूरी कर ली है बेशक भारत को इस दिवस का मेज़बान बीते साल बनाया गया था लेकिन अच्छा होता की आज इस छेत्र में हासिल उपलब्धिओं का ब्योरा देने वाले विज्ञापन छपवाए जाते
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