निश्चित वेतन के स्थान पर दैनिक कार्य आधारित भत्ता दिया जाता तो शायद संसद का भी काम काज ज्यादा अच्छी तरह चल सकता था।यह विचार व्यक्त करते समय केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने केन्द्रीय सरकारी कर्मचारिओं के प्रति सरकार की नकारात्मक नीतिओं की तरफ भी इशारा कर ही दिया।
लोक सभा में डिमाड्स फार ग्रांट्स फार हेल्थ एंड फमिली वेलफेयर फोर २०१२-२०१३ के लिए प्रश्नों का उत्तर देते हुए मंत्री से जब पूछा गया की स्वास्थ्य कार्यकर्ती आशा आदि के लिए निश्चित वेतन नहीं है और जो दैनिक भत्ता दिया जा रहा है वह बेहद कम है\इस पर श्री आज़ाद ने इस प्रश्न का उत्तर देते समय मुख्य विपक्ष द्वारा खाद्य भंडारण की बदइन्तजामी पर सदन छोड़ कर जाते समय चुटकी भी ली ।श्री आज़ाद ने कहा की सरकारी दफ्तरों में निश्चित तनख्वाह है इसीलिए वहां के हालात यूनियनों के भरोसे हैं अगर वहां भत्ता होता तो काम अच्छा होता \अपनी इस बात को आपतिजनक दिशा में जाता देख कर मंत्री महोदय संभले और बात को विपक्ष की तरफ मौडते हुए कहा की सदन में भी अगर भत्ता दिया जाता तो यहाँ भी काम अच्छा होता अर्थार्त यदि सांसदों को मासिक वेतन के स्थान पर भत्ता दिया जाता तो आये दिन हल्ला गुल्ला +बहिष्कार+ अवकाश आदि कम होते और उपस्थिति और कार्य ज्यादा होता।
गौरतलब है कि यूनियनों कि मनमर्जी के चलते ही सरकारी दफ्तरों में स्थाई कर्मियों कि संख्या दिनों दिन कम की जा रही हैऔर महत्वपूर्ण कार्य भी आउट सोर्सिंग या ध्याड़ी मजदूरी पर कराय जा रहे हैं ।केंद्र सरकार के एक महत्वपूर्ण रक्षा के सहयोगी विभाग का उल्लेख जरूरी है ।यहाँ प्रति माह लगभग १०% स्टाफ सेवानिव्रती पाता है मगर स्टाफ सलेक्शन बोर्ड से पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती ।कम्प्यूटरीकरण के नाम पर स्टाफ कटौती को जरूरी बताया जा रहा है।मगर कम्प्युटर चलाने को पर्याप्त स्टाफ का अभाव है\
स्टाफ तो बेशक कम हो रहा है जाहिर है की कार्य की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है मगर आश्चर्यजनक रूप से यहाँ के बजट में कोई कमी होने के बजाये बढ़ोत्तरी ही हो रही है ।आये दिन फर्नीचर+स्टेशनरी+मरम्मत आदि पर छौटे छौटे सप्लायर्स से बड़े बड़े सौदे किये जा रहे हैं महत्वपूर्ण कार्यों के लिए आउट सोर्सिंग का सहारा लिया जा रहा है। बेशक बीते समय में यूनियनों का इतिहास कोई प्रशंसा योग्य नहीं रहा है आये दिन हड़ताल + ताला बंदी+घेराव+से प्रग्रती प्रभावित हुई है मगर इसके पीछे इसे संभालने में राजनितिक+प्रशासनिक नाकामयाबी भी रही है।अब स्टाफ की कमी के चलते भ्रष्टाचार का ग्राफ निरंतर बढ रहा है ।
कांग्रेस और भाजपा की इस नीति के विरोध में मजदूरों की हितेषी कहे जाने वाली वामपंथी पार्टियां भी खामोश हैं।शायद इसीलिए देश में भ्रष्टाचार का ग्राफ दिनोदिन बढ़ता जा रहा है सो इस नीति पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक ही है।
गौरतलब है कि यूनियनों कि मनमर्जी के चलते ही सरकारी दफ्तरों में स्थाई कर्मियों कि संख्या दिनों दिन कम की जा रही हैऔर महत्वपूर्ण कार्य भी आउट सोर्सिंग या ध्याड़ी मजदूरी पर कराय जा रहे हैं ।केंद्र सरकार के एक महत्वपूर्ण रक्षा के सहयोगी विभाग का उल्लेख जरूरी है ।यहाँ प्रति माह लगभग १०% स्टाफ सेवानिव्रती पाता है मगर स्टाफ सलेक्शन बोर्ड से पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती ।कम्प्यूटरीकरण के नाम पर स्टाफ कटौती को जरूरी बताया जा रहा है।मगर कम्प्युटर चलाने को पर्याप्त स्टाफ का अभाव है\
स्टाफ तो बेशक कम हो रहा है जाहिर है की कार्य की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है मगर आश्चर्यजनक रूप से यहाँ के बजट में कोई कमी होने के बजाये बढ़ोत्तरी ही हो रही है ।आये दिन फर्नीचर+स्टेशनरी+मरम्मत आदि पर छौटे छौटे सप्लायर्स से बड़े बड़े सौदे किये जा रहे हैं महत्वपूर्ण कार्यों के लिए आउट सोर्सिंग का सहारा लिया जा रहा है। बेशक बीते समय में यूनियनों का इतिहास कोई प्रशंसा योग्य नहीं रहा है आये दिन हड़ताल + ताला बंदी+घेराव+से प्रग्रती प्रभावित हुई है मगर इसके पीछे इसे संभालने में राजनितिक+प्रशासनिक नाकामयाबी भी रही है।अब स्टाफ की कमी के चलते भ्रष्टाचार का ग्राफ निरंतर बढ रहा है ।
[१] सभी एक जैसे ही हैं? |
[२]रक्षा लेखा विभाग में आयोजित सभा में स्टाफ की कमी और आउट सोर्सिंग पर चिंता व्यक्त करते हुए यूनियनों के नेता गण |
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