Sunday, April 29, 2012

नक्सल वाद+भ्रष्टाचार +अपराध+आदि से राजनीतिकों +मीडिया का ध्यान बंट गया ।शायद यही मकसद भी था।

राजनितिक दल अगर कुछ  चाहने लगते हैं तो विभिन्न आशंकाएं घेरने लगती है और अगर उनकी चाहत पूरी हो जाए तो आशंकाए वास्तविक डर के रूप में सामने आने लगती है यह  समस्या आम देसी आदमी की है।सचिन तेंदुलकर और अभिनेत्री रेखा को राज्य सभा की सदस्यता अता फरमा दी गई है इससे[इतिहास के अनुसार] दो सीटें तो  बेभाव  गई हाँ  नक्सल वाद+भ्रष्टाचार +अपराध+आदि से  राजनीतिकों +मीडिया का ध्यान  बंट गया ।शायद यही मकसद भी था।क्योंकि सचिन ने  कह दिया  है की उन्हें राजनीति नहीं करनी है क्रिकेट पहला मकसद हहै  
 इसके अलावा  ज्वलंत समस्याओं को टालने को और प्रपंच जारी है
 बोफोर्स के सामने बंगारू लक्ष्मण  ले आये गए ।महंगाई  की  खिची हुई   लम्बी लाईन को छोटा करने के लिए उसके समक्ष डीज़ल के दामो में और बढ़ोत्तरी की बड़ी रेखा खींच दी गुई है।अब मीडिया भी बेचारा रसोई गैस के सिलेंडर के १००० /= का होने की आशंका में ही घिरा हुआ है। सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार और सेना के लिए चेज्क टेट्रा ट्रकों की दलाली का मुद्दा गया बार्डर पार।यानि ठन्डे बसते में।
      अब सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है की संसद सत्र में ही ऐसे  सियासी उबाल क्यूं आते है शायद संसद में सांसदों की नाकामी को केमोफ्लेज  करने के लिए  ये उबाल  विदेशों से भी आयात किये जाते है ।लश्करे तैय्यबा के हाफ़िज़ सईद  के  आतंकवाद पर अमेरिका का यूटर्न  हमारे एक फिरके को दिशा देने में सक्षम है वरना संसद के अन्दर  तेलंगाना और संसद के बाहर  दूध आन्दोलन  अनसुना व्यर्थ नहीं जाता \
   राष्ट्रपति  के चुनाव के लिए कांग्रेस की दिल्ली से चेन्नई तक की  उठापटक  छोटे समर्थक दलों में हलचल पैदा करने को पर्याप्त हैं।इस के पीछे राज्यपालों की बंटी रेवड़ी का विरोध नक्कारखाने में तूती ही बन कर रह गया।अन्ना हजारे का एक मई से महाराष्ट्रा का दौरा भी अभी तक  सचिन के हेन्गोवर से ही त्रस्त है 

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