Tuesday, April 17, 2012

दिल्ली की हार से राष्ट्रीय स्तर पर किसी उलट पलट की उम्मीद लगाना अभी तो जल्दबाजी ही होगी।

[१]यह तेरी राष्ट्रीय जीत नहीं है 
 दिल्ली की एम् सी डी के लिए हुए चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस से लगभग दोगुनी सीटें जीत कर कांग्रेस को उसके अपने ही शासन में करारी हार दे दी है। अबकी बार  यहाँ भाजपा ने स्थानीय  नहीं वरन राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा  था इस लिए  दिल्ली के  निगम[एम् सी डी] में कांग्रेस की हार और भाजपा की पुनः जीत  से एक सन्देश तो साफ़ जाता है की उत्तर प्रदेश+पंजाब +गोआ आदि के बाद अब दिल्ली की जनता ने भी कांग्रेस की नीतिओं के विरुद्ध मत दे दिया है |बेशक भाजपा इसे रास्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की हार बता रही है मगर कांग्रेस अभी भी दिल्ली की हार  को केवल निगम तक ही सीमित रखे जाने पर जोर दे रही है|
   पांच साल पहले भी जब भाजपा यहाँ जीती थी तब भी यही कहा जारहा था मगर उसके बाद प्रदेश की विधान परिषद्  और देश की संसद पर कांग्रेस का कब्जा हो गया। शायद यही  इस दलील  का आधार भी है।
कुछ भी हो रास्ट्रीय स्तर पर हार जीत के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक विकल्प की भी जरुरत होती है और भाजपा+सपा+बसपा+वाम+दक्षिण++++ आदि कोई भी राष्ट्रीय विकल्प देने में समर्थ नाहीं है ।
   बेशक भाजपा के नरेंदर मोदी को कानूनी लढाई में जीत मिल गई है और बिहार के  सी एम् नितीश  कुमार  ने  बिहार दिवस  पर जय महाराष्ट्रा का नारा लगा कर राष्ट्रीय दौड़ में अपनी उम्मेदवारी दर्ज कर ली है मगर इन दोनों को राष्ट्रीय मंच पर स्वीकृति प्राप्त करने में काफी समय लगेगा।
अभी राज्योंके मुख्यमंत्रिओं की केंद्र के साथ हुई महत्वपूर्ण बैठक में किसी भी राज्य के मुखिया ने राष्ट्रीय स्तर के न्रेतत्व का परिचय नहीं दिया |केवल अपनी  संकीर्ण   छेत्रिय मसलों पर ही उलझे रहे आतंकवाद के राष्ट्रीय मुद्दे उन्सुल्झे ही रह गए।
[2]हाथ मुठी नहीं बन सका 

[३]एम् सी डी के बाद अब विधान परिषद् और फिर संसद का ताज 
 कांग्रेस की नीतियाँ भी आम आदमी तक नहीं पहुँच पा रहीहै शिक्षा+अपराध+आतंकवाद+महंगाई+भ्रष्टाचार आदि के दाग धुल नहीं  पाए हैं इस सब के उपरान्त भी राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प का अभाव है इसीलिए
 दिल्ली की हार से राष्ट्रीय स्तर पर किसी उलट पलट की उम्मीद लगाना  अभी तो जल्दबाजी ही होगी।

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