Friday, March 23, 2012

पाकिस्तान की सेन्ट्रल जेल और बंगा लायल पुर[अब फैसलाबाद]आज भी सियासी मान्यता को तरस रही है।

 भगत सिंह+राजगुरू और सुखदेव के  २३=०३=१९३१ को सर्वोच्च बलिदान को मेरा कोटि कोटि नमन
    गुलाम भारत बेशक अपने इन तीन लाडलों को विदेशी गैरकानूनी सरकार के गैरकानूनी फांसी से बचाने में असफल रहा मगर उससे पहले ३०-०६=१९२९ को जेल में की गई भूख हड़ताल को समर्थन देने के लिए इस दिन को भगत सिंह दिवस मना कर अपना समर्थन जरूर दे दिया था ।शायद यही कारण है कि इन तीनो  की कुर्बानी ,देश प्रेम की नई लहर के रूप में फ़िल्मी दुनिया के युवा  दिलीप कुमार और मनोजकुमार के अलावा आज भी हिन्दुस्तान+पाकिस्तान  के  युवाओं को भी रोमांचित  करती है।
   दुर्भाग्यवश आज की सियासी दुनिया अपनी सियासत में ही उलझी है
    पाकिस्तान की सेन्ट्रल जेल और  बंगा लायल पुर[अब फैसलाबाद]आज भी सियासी मान्यता को तरस रही है।
बंगा लायल पुर [आज फैसलाबाद]में जन्मे और  पाकिस्तान स्थित लाहौर की सेन्ट्रल जेल में फांसी पाए शहीद भगत सिंह का स्मारक  की अनुपस्थिति कहीं  ना कहीं दिल को दुखाती  जरूर है दोनों मुल्कों की हकुमतें आज भी ब्रिटिश सरकार के इन बागिओं को सम्मान देने में कतराती हैं।
  यहाँ यह बताना भी लाज़मी है कि लाला लाजपत राय के हत्यारे सांडर्स पर गोलियां  और फिर संसद में बम्ब फैक कर गुलामी के विरुद्ध  जन चेतनाजगाने के लिए शहीदे आज़म भगत सिंह को याद किया जाता है।
     

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