Wednesday, November 16, 2011

आज़ादी के बाद से सन २००० तक १५ नए राज्य बनाए जा चुके है|इसीलिए उत्तर प्रदेश का और विभाजन कोई नया आश्चर्य नहीं है|लेकिन इससे पूर्व यह देखना जरूरी है की पूर्व में बनाये गए नए राज्यों में अनेक समस्याएं उठी हैं कुछ तो अब तक भी जीवंत हैं|

उत्तर प्रदेश की राजनीति  दिनों दिन बदल रही है |अब विपक्षी की खींची लकीर को पीट पीट कर मिटाने  के बजाये उससे बड़ी अपनी लकीर खींचने की परिपाटी चल पडी है |देश की रियासत पर काबिज होने के लिए उत्तर प्रदेश पर कब्जा[सियासी]जरुरी है सो कांग्रेस के बिग शाट राहुल गांधी ने फूलपुर में एक लम्बी  सियासी लाइन खींचीउन्होंने प्रदेश की खस्ता हालत के लिए व्यवस्था पर सारे दोष डालते हुए प्रदेश वासिओं को भिखारी  बनाने का आरोप लगा दिया|| प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को इससे अपनी कुर्सी हिलती दिखाई दी लेकिन अपने काबिल सलाहकारों की सलाह पर[शायद]उन्होंने  देश के सबसे बड़े प्रदेश को चार टुकड़ों में बांटे जाने की बात कह कर  एक लम्बी  सियासी लाईन खींच दी वर्तमान में यही लाईन सबसे बड़ी साबित  हो रही है |
       मायावती ने उत्तर प्रदेश के विकास के  लिए छोटे राज्यों की वकालत करते हुए प्रदेश के चार हिस्से किये जाने के प्रस्ताव को विधान सभा में पारित करने और केंद्र को भेजने की बात को उछाल दिया है|यह मुद्दा  सबसे बड़ी लकीर और शक्तिशाली चुम्बक साबित हुआ और सभी सियासी दल फिलहाल इसी के साथ ही चिपके हुए दिखाई दे रहे हैं| और किसी तरह इस लकीर को ही पीट पीट कर  मिटाने की कोशिश में हैं| इस लाईन को छोटा करने की गरज से एस.पी. के नेताओं की कांग्रेसी नेताओं द्वारा हेलीपेड पर पिटाई और उन कान्ग्रेसिओं के विरुद्ध ऍफ़.आई.आर. दर्ज किया जाना भी है|राहुल गांधी को काले झडे धिकाने को कई एस.पे. नेता हेलीपेड में घुस गए थे इसपर कान्ग्रेसिओं ने उन्हें जम कर पीटा
       इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलता है की प्रदेश को तीन टुकड़ों में बांटने की मांग बहुत पुराणी है इसमें से एक मांग  को पूरी करते हुए   उतराखंड बनाया जा चुका है|अब  हरित प्रदेश की जरुरत महसूस की जा रही  है|हरित प्रदेश बनाये जाने से प्रदेश का विकास होगा इसपर बहस हो सकते है मगर इस विभाजन के लिए अधिकाँश राजनितिक दल अपने अपने तरीकों से एकमत हैं|
     आज़ादी  के बाद  से सन २००० तक १५ नए राज्य बनाए जा चुके है|इसीलिए उत्तर प्रदेश का  और विभाजन कोई नया आश्चर्य नहीं है|लेकिन इससे पूर्व यह देखना जरूरी है की पूर्व में बनाये गए नए राज्यों में अधिकाँश में आय+राजधानी+आबादी+ सीमा छेत्र +पानी आदि की अनेक समस्याएं उठी हैं कुछ तो अब तक भी जीवंत हैं|इसीलिए अब नए राज्य बनाने से पहले उन समस्याओं का अध्ययन करके उनका पहले ही निवारण किया जाना जरूरी है|सविंधान की धारा १९५६ के अनुसार नए राज्यों के लिए संतुति केंद्र द्वारा दी जानी है सो बाल फिर से केंद्र के कोर्ट में ही आ गिरी है|
    

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