Wednesday, November 23, 2011

परम्पराओं का पालन करके समारोह या आयोजन शुरू करने से अच्छा और कया हो सकता है|

चक्की चुंग शुरू हो गई है अब जितने भी आयेंगे खापी करके ही जायेंगे 

बड़े और छोटे सभी चक्की पीसेंगे 

 लेकिन शुरूआत तो दुल्हे की माँ से ही हो यह सबकी मांग रहती है 
परम्पराओं का पालन करके समारोह या आयोजन शुरू करने से अच्छा और कया हो सकता है|
भारतीय किसी धर्म या समुदाय का हो अगर चाँद पर भी पहुँच जाएगा तो वहां भी उसे अपनी सांस्कृतिक +सामाजिक+धार्मिक रीति+रिवाजों को अपनाने या उनका पालन करने की चाह कम नहीं होगी |क्योंकि आज के दौर में अमेरिका जैसे विकसित और अत्याधुनिक देश में रह कर भी अपने देश में शादी करना और अपनी सांस्कृतिक विरासतों का आनंद लेते अनेकों युवा यत्र ,तत्र , सर्वत्र दिखाई देते हैं|
   आज कल सायों [शादी]का सीज़न है सो शादियाँ भी धडाधड हो रही है|मेरे  परिवार को भी यह  सौभाग्य मिला है|मेरा बड़ा बेटा टेक्नोक्रेट है और अमेरिका से मेरठ=यूं.पी.=इंडिया में मेरठ की ही टेक्नोक्रेट से  शादी करने  आया हुआ है|परिवार में शादी का माहौल बनाने या शादी की रीति रिवाजों को शुरू करने के लिए सबसे पहले बुजुर्गों की कडाई[हलवा]बना कर दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करके उनका आशीर्वाद लिया गया |इसके बाद परिवार की महिलाओं ने चक्की चला कर चक्की चुंग की  रीति का पालन किया |बेशक  पूर्वजों को याद करने के लिए श्राद किये जाते हैं मगर शुभ कार्य शुरू करने के लिए बुजुर्गों+पूर्वजों को कैसे भुलाया जा सकता है |उनका आशीर्वाद हर वक्त  जरूरी होता है|
   इस अवसर पर वर्षा या आंधी से कोई विघ्न ना पड़े सो मीं झकड़ [मैदे की मीठी मठियां]बना कर बांटी जाती हैं|
  बेशक आज कल  बाज़ार में आटा पीसने की चक्कियां लगी हुई हैं और पिसा पिसाया आटा भी मिलता है मगर पुराणी रिवायत है की शादी ब्याह में महमानों का आगमन कई दिन पहले से ही शुरू हो जाता है| पहले गावं =गली+मुहल्लों में चक्कियां कहाँ हुआ करती थी सो घरों में ही महिलायें चक्की चला  कर आटा या मसाले की  पर्याप्त मात्रा  स्टोर करलेती थीं | अब यह जरूरी नहीं है मगर यह पाश्चात्य आवश्यकता अब परम्परा बन चुकी है और   इन परम्पराओं का पालन करके समारोह या आयोजन शुरू करने से अच्छा और कया हो सकता है| जमोस सबलोक 

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