मेरठ में प्रतिष्ठित दीवान ग्रुप की बेहदकम समय में तरक्की और उससे कम समय में गिरावट से यह मानना पड़ता है की स्वर्ग और नरक यहीं है मनुष्य के अपने हाथों में ही है |अपने कर्मों के आधार पर ही मनुष्य फल भोगता है |यश अपयश सभी अपने कर्मों के आधार पर ही भोगा जाता है|शायद इसीलिए कहा भी गया है की कर्मन की गति न्यारी \
दीवान ग्रुप की लोकप्रियता+आर्थिक स्थिति और पारिवारिक संबंधों में आई गिरावट करमन की गति का बखान बखूबी कर रही है|
विद्यासागर दीवान ने अपने भाइयों के साथ मिल कर अपने उत्तम कर्मों से एक छोटी सी खोकानुमा दूकान को ८०० करोड़ रुपयों के जागीर में विकसित कर लिया| यह सफलता उन्होंने अपनी प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बडाई |, बेहद चतुराई से फले फूले इस कारोबार को सुरक्षित रखने को काफी संयम की जरूरत थी मगर पांच भाईओं के दस से अधिक बच्चों में साहस+ योग्यता +दृढ़ निश्चय +चतुराई+के साथ साथ संयम का भी सर्वथा अभाव रहा जिसके परिणाम स्वरुप दीवान ग्रुप का नाम मिटटी में मिलता जा रहा है ओद्योगिक संस्थान तो बंद होते ही जा रहे हैं अब निवासों में भी क़र्ज़ लेने वाले सरकारी सील लगाने लग गए हैं |
ऐसे में संकट से उबरने के लिए परिवार में एकजुटता + साहस+ योग्यता +दृढ़ निश्चय +चतुराई+के साथ साथ संयम की दुबारा जरुरत है इश्वर इस ग्रुप की रक्षा करें करें
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