Saturday, September 17, 2011

अपने करियर के लिए बच्चों को क्रच का ग्रहण लगाते हैं जिसके कारण माँ बाप वृधाश्रम में अपना बुढापा काटने को अभिशिप्त होते हैं|

भौतिक वादी इस युग में बच्चे और माँ बाप ,दिखाए गए,अपने अपने मार्गों का अनुसरण करते हुए सफलता के नित नए झंडे  गाड़ रहे हैं मगर इस सबके बावजूद भी आज माँ बाप अकेले पण + उपेक्षा का शिकार होते हुएबुढापे में  स्नेह से वंचित हो रहे हैं | 
   विकास की इस मौजूदा दौड़ में छोटे निउक्लियर परिवारों का आम चलन है और स्वाभाविक रूप से इन निउक्लियर घरों में बुजुर्गों की गैरमौजूदगी का अभिशाप भी लगा होता है |जाहिर है इससे बच्चों और बड़ों में आपसी सामंजस्य+रिश्ता+संवाद+लगाव का अभाव उत्पन्न होना लाज़मी है|इस अभाव के कारण ही भारतीय 
[सर्व श्रेष्ठ] संस्कृति+परम्परा के पीडिओं में  स्थानान्तरण के दायित्व का निर्वाह नहीं हो रहा|रोजमर्रा की आपाधापी में सांस्कृतिक +पारम्परिक मर्यादाओं की धरोहर पीछे छूटती जा रही है |
   आज जो बच्चे हैं वोह कल माँ बाप बनते हैं और तब अपने बच्चों  का भविष्य संवारने को अपने  वर्तमान की आहुति देते हैं  
   देखा जाए तो वास्तव में विकास की इस अंधी दौड़ में बच्चों और अविभावकों में भौगोलिक और भावनात्मक दिल की दूरिया बड़ती जा रही हैं|इसके परिणाम स्वरुप क्रच==वृधाश्रम का ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है|
   अपने करियर के लिए बच्चों को क्रच का ग्रहण लगाते हैं जिसके कारण माँ बाप आगे चल कर वृधाश्रम में अपना बुढापा काटने को अभिशिप्त होते हैं| 
    आज अक्सर ,बच्चों पर,अपने माँ बाप की बुढापे में उपेक्षा का आरोप लगाया जाता है अगर देखा जाए तो इस सब के लिए व्यवस्था+समाज+सरकार के साथ वह सवयम भी जिम्मेदार हैं| कहा जाता है की मज़बूत मकान बनाने के लिए उसकी नीवं पर विशेष ध्यान देना जरूरी है यही नियम परिवार पर भी लागू होता है |बचपन को लाड प्यार से सवांरने पर यही बचपन आगे चल कर स्वस्थ +संस्कारी  युवा बनाता है और अपने माँ बाप के साथ साथ समाज के बुजुर्गों की भी लाठी बनता है ||
 इस भारतीय सोच पर  विकसित देशों में भी अब शोध किये जा रहे हैं |हाल ही में इंग्लैण्ड में हुए एक ताज़ा शोध में   बचपन को संवारने पर विशेष बल दिया गया है यहाँ तक की स्वस्थ संस्कारी युवा के लिए हँसता खेलता बचपन आवश्यक बताया गया है 
   

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