अविभाजित भारत पंजाब के रावल पिंडी में [अब पाकिस्तान में]हमारे पूर्वज सावन के महीने में गुग्गा पूजते थे हिंदुस्तान के मेरठ में शरणार्थी बन कर आने पर भी हमारी माता [अब स्वर्गीय]सावन के पहले रविवार को गुग्गा जरूर पूजती रही आस पड़ोस में बैरी के पेड़ पर दूध|+मीठे जौले+बर्फी +फल +एक आध रुपय्या अर्पित करके पूर्वजों को नमन करती और उनकी आत्मा की शांति की कामना करती रही|इसके बाद हाथों से बटाई किए मीठे जौले[सेवाइयान]का प्रशाद सभी को मिल जाता था |
इस महीने के 2nd रविवार को भी सुबह सुबह परिवार की एक बुजुर्ग महिला ने फोन करके श्रीमती जी को गुग्गा पूजन की याद कराई |अब बैरी के पेड़ की तलाश शुरु हुई मगर हताश होकर नजदीक के मन्दिर में ही श्र्धानुसार पूजा अर्चना करके पूर्वजनों को नमन किया |और अपनी परंपरा या कल्चर को आगे किया और श्र्धाभाव से मीठे[बाज़ारी सेवैयान] जौले से नाश्ता किया
मौजूदा दौर में बचे राह गए एक बुजुर्ग से मैंने इस गुग्गा पूजन के बारे में पूछा तो उन्होंने अपनी ही शइली में बताया कि सावन के महीने में बरसात जाम कर होती थी जंगली जानवर विशेषकर साँप आदि जंगलों से बाहर निकल कर आबादी कि तरफ़ आ जाते थे इससे मानव जाती को भी नुकसान पहुँचता था तो इसकी रोकथाम को घर के बाहर ही बैरी के पेड़ के नीचे खाध्य सामग्री रख कर भोजन कि व्यवस्था कि जाती थी और जानवर वहीं तक सीमित रहते थे|
आज कल जंगल और शहर में कोई अंतर नहीं रह गया है सो बैरी भी कहीं दिखाई नहीं देती मगर चूँकि पूर्वजों कि आत्मा कि शांति और परंपरा के लिए कुछ किया जाना जरूरी है सो मन्दिर में ही[बेशक़ पुजारी हो या ना हो ] औपचारिकता का परंपरा का निर्वाह जरूरी है
गुग्गा पूजन सावन के रविवार में |
गुग्गा पूजन सावन के रविवार में |
यदि मेरे मित्रों को गुग्गा के विषय में कोई जानकारी हो तो प्लीज़ सांझा करें
2 comments:
जानकारीपूर्ण आलेख। आपकी प्रविष्टि इस बात की परिचायक है कि किस तरह परम्परायें और उनकी जानकारी हाथों से फ़िसलती जा रही है।
Thanks For encouragement wITH These SMART cOMMENTS
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