सोवियत संघ के अन्तिम दिनों में फिसली भारतीय विदेश नीति सोवियत संघ के विघठन के पश्चात ऐसी राह भूली के आज तक सही राह को तरस रही है |जिसके फल्स्वरूप सोने की चिड़िया भारत को फिर लूटा ही जा रहा है
यहाँ में कुछ देशों के व्यवहार का उल्लेख करना चाहूँगा
[1] सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया का जिक्र किया जाना जरूरी है इस देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान कराने में वहां शिक्षा प्राप्त कर रहे हमारे देश के छात्रों का भी योगदान है इसके बावजूद उन्हें नस्लवाद का निशाना बनाया जाता है उसका कोई पुरजोर या प्रभावी विरोध नहीं होता इसी कमजोरी का लाभ उठाते हुए आस्त्रेलिया ने भारत को यूरेनियम देने को मना कर दिया है जबकि यूरेनियम भारतीय शांति और विकास के लिए बहुत जरूरी है |
[2] बांग्लादेश का जन्मदाता के रुप में भारत का नाम लिया जा सकता है मगर वहां भारत विरोधी गतिविधिओ के संचालन के साथ हथियारों की खरीद में भारत की उपेक्षा की जा रही हे|और तो और भारत के कड़े प्रतिद्वंदि चीन से हथियार खरीदे जा रहे हैं |
[3] ईरान ने भारत को उधारी पर तेल देने को आनाकानी शुरु कर दी है यह हमारी अर्थव्यवस्था के साथ साथ उस देश से हमारे रिश्तों की भी पोल खोलता है |
अमेरिका से दोस्ती का दम भरने वाली भारत सरकार को पाकिस्तान में भारत विरोधी आतंकवादिओ के प्रति आमेरिकी नरमी से बार बार झटके लग रहे हैं|इस सबके बावजूद अमेरिका अपने व्यापारिक हित साधने में सफल है|
[४] चीन भी अपनी पुराणी चींटी की रफ़्तार से भारतीय भूमि को ना केवल कब्ज़ा रहा है वरन पकिस्तान +अफगानिस्तान और बांग्लादेश को भारत के विरुद्ध मज़बूत भी कर रहा है|
अफगानिस्तान भी पुनः तालिबान की शरण में जाने को उतारू है | नेपाल +मयामार आदि अनेक नाम ऐसे ही है इन पर चर्चा बाद में होगी
इस सब के लिए में एन डी ए और यू पी ए की सरकारों की कमजोरी को दोष देना और श्रीमती इन्दिरा गाँधी का उल्लेख जरूरी समझता हूँ बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजिबुर्रेहमान के कत्ल के तत्काल पस्चात इन्दिरा गाँधी ने उस समय के विदेश मंत्री को फौरन बदल दिया था क्योंकि विदेश मंत्रालय उस समय शेख की हत्या के बारे में अनजान था
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