मेरठ के एतिहासिक नवचंडी मेला समाप्त हो गया इस वर्ष भी अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल ही रहा मेले के मुख्य उद्देश्यों में [१]साम्प्रदायिक सोहार्द को बढावा देना[२]छेत्र के व्यवसाय*कला*साहित्य को बढावा देना [३]मनोरंजन आदि आदि रहें हैं दुर्भाग्य से बीते कई वर्षों से इनमे से एक उद्देश्य की भी प्राप्ति नहीं हो रही|ऐसे में अगर कहा जाए की आज यह मात्र कुछ लोगों की जेब भरने का माध्यम मात्र बन कर रह गया है तो यह अतिश्योक्ति या मात्र दोषारोपण नहीं होगा|
मेला परिसर में चंडी माता का मंदिर और बाले मियाँ की मज़ार हैं इन दोनों की अपनी अपनी मान्यताएं हैं इस साल भी इन दोनों स्थलों पर श्र्धालूजन आते रहे मगर दुर्भाग्यवश बीते सालों की तरह इस बार भी इन दोनों धार्मिक स्थलों को जोड़ने वाला सेतु बनाने वाला कोई नज़र नहीं आया|शायद इसीके फलस्वरूप मेले के दौरान ही शहर में साम्प्रदायिक दंगे हुए यहाँ तक की मेला समापन दिवस भी इससे अछूता नहीं रहा|ज़ाहिर है की यह मेला भी मेरठ के सम्प्रदायों का दिल जोड़ने में नाकाम रहा|
व्यवसाय को बढावा देना तो दूर यहाँ व्यवसाइयों को लाने में भी कोई कामयाबी नहीं मिली|दुकाने भी कोई विशेष आकर्षण पैदा नहीं कर सकी| छेत्रिय व्यवसाय*खाद्दान्य *स्किल की कोई आकर्षक छवि नज़र नहीं आयी|दूकान दार फायदे की बजाये नुक्सान को लेकर रोते ज्यादा नज़र आये यहाँ तक की अंत में लुभाव के रूप में पोलिस की लाठियां भी खाई अर्थार्त धन और मान दोनों की हानि हुई|शासन *प्रशासन *जनता ने कोई विशेष सहयोग नहीं किया |अंतिम दिनों में मेला समेटने को तीन दिनों में भी लाठियां ही मिली |मेले में आये व्यवसाइयों ने जरूर तें चार दिन फ्री में मनोरंजन किया मगर सभी के असहयोग के कारण कोई लाभ नहीं हुआ|
कला साहित्य के नाम पर पटेल मंडप में कुछ कार्यक्रम अवश्य हुए मगर इनकी प्रस्तुती स्तरीय ही कही गई है छेत्र के सभी वर्गों*सम्प्रदायों*जातिओं की भागेदारी नगण्य ही रही यहाँ पंजाबी समाज की अच्छी खासी तादाद है और संम्पन होने के साथ साथ संस्क्रति प्रेमी भी हैं मास्टर किशन लाल साहनी *जानकी नाथ सुरी से लेकर रमेश धींगरा तक ने अपने खर्चे पर बड़े बड़े कार्यक्रम किये हैं प्रति वर्ष पंजाबी समाज पटेल मंडप में पंजाबी कवि दरबार या पंजाबी कल्चरल शो करता रहा है इनके प्रोग्राम्स में सुरेन्द्र कौर *आशासिंह मस्ताना आदि से लेकर सुपर स्टार राजेश खन्ना ने भी शिरकत की है मगर दुर्भाग्य से इस वर्ष ना तो प्रशासन और ना ही समाज ने ही इस दिशा में कोई कदम उठाया |
इस असफलता के लिए कई कारण गिनाये जा सकते हैं [१] मेले की तारीख से कुछ दिन पहले ही मेले की जिम्मेदारी जिला पंचायत को दी गई[२] इसके अध्यक्ष इस मामले में अनुभवहीन थे[३]मेला परिसर और बाहर पारिवारिक माहोल नहीं बन पाया जिसके कारण सभ्य कहे जाने वाले परिवार मेले से दूर ही रहे [४] मोसम की बेरुखी और साम्प्रदायिक दंगों के कारण असुरक्षा का वातावरण रहा[५] सास्क्रतिक आयोजन दर्शकों को मेले में खीचने में असफल रहे[६] मेला प्रेमी और दुकानदारों के प्रति प्रशासन और पोलिस का व्यवहार |
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