Saturday, July 10, 2010

आबादी बड़ती जा रही है भई दोषी मे तो बिलकुल ही नहीं हूँ

मेरे पिता जी आज़ादी के तुरंत बाद से ही मुल्क के बटवारे के जख्मो को सहलाते ही रहे मुर्ग मुसल्लम और देसी घी के दौर में भी केवल दो ही बच्चे पैदा करके स्वर्ग सिधार गए मेरे बड़े भाई साहब ने देसी घी के दौर में[ प्रजनन क्षमता के बावजूद भी] दो ही बच्चों से संतोष कर लिया डालडा दौर में मैंने [प्रजनन क्षमता के उपरान्त भी ]दो ही बच्चों के बाद फुलस्टाप लगा दिया यह सब १९८७ अर्थार्त विश्व जनसँख्या दिवस से पूर्व हो चुका था रिफाइंड आयल दौर के मेरे दोनों बच्चे भी [अभी तक कुंवारे हैं]परिवार नियोजन के प्रति जागरूक हैं कहने का अभिप्राय है की मेरे परिवार के कारण विश्व की आबादी ५ बिलियन पर पहुंची थी और ना ही मेरे बच्चों के सोजन्य से भारत आबादी के मामले में चीन को पछाड़ने जा रहा है अब प्रश्न है की इस सब के बावजूद भी विश्व और भारत की आबादी बड़ती जा रही है बड़ती जा रही है और बड़ती ही जा रही है भई आप भी अब ये तो मानेंगे की इस सब का दोषी मे तो बिलकुल ही नहीं हूँ

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

चलिये आप को माफ़ किया, इलजाम किसी दुसरे के सर पर जड देते है

jamos jhalla said...

भाटिया जी वोह सर गंजा नहीं होना चाह्हिये