१-४-२०१० से शिक्षा का अधिकार कानून बना दिया गया है|इसके अंतर्गत सभी स्कूलों में नज़दीक के गरीब व् वंचित तबके के कम से कम २५%छात्रों को लेना होगा| यदि यह सब ठीक ठाक चलता रहा तो २०२० तक वर्तमान १५%कालेज जाने वालों की संख्या ३०%तक पहुँच जायेगी|लेकिन ये आंकड़े वास्तविक धरातल पर मर्गतृष्णा ही लग रहे हैं|इस मार्ग में दूरबीन के बगैर भी कई अडचनें नज़र आ रही हैं|
[१]वंचितों ,गरीबों को शिक्षा देने के लिए केंद्र सरकार ने ५५%धन उपलब्ध कराने की बात कही है|मगर कई राज्य अपने हिस्से के ४५% देने को तैयार नहीं हो रहे|
[२] सरकारी ९३% स्कूलों में [अ]बुनियादी सुविधाओं का सर्वथा अभाव है|[आ]शिक्षक छात्र अनुपात चिंताजनक है|[इ]शिक्षकों के गुट हैं और अपनी जायज नाजायज मांगों के लिय हड़ताल ही एक विकल्प है|
[३]आज़ादी के ६ दशक बाद भी १७००० गावों में स्कूल तक नहीं है|
यह भयावक स्थिती तब है जब की ९३%स्कूली व्यवस्था सरकार के पास है|
[४]एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में तीन और एक के अनुपात में कमरे उपलब्ध हें जबकि कक्षा का ओउसत ३५ है|
[५]कम्पूटर की पढाई पर जोर दिया जा रहा है जबकि इसका १४.१२%रास्ट्रीय ओउसत है|
[६]कक्षा आठ के बाद कया होगा|यह यक्ष प्रश्न अनुतरित है|
शायद इसी कारण से ड्राप आउट ज्यादा है|प्रायमरी में एक करोर चौंतीस लाख दाखिले लेते हैं मगर पांचवी तक एक तिहाई और आठ के बाद आधे बाहर हो जाते हैं|यह स्थिति रिसर्च तक चलती रहती है|
शायद यही कारण है की सरकारी स्कूलों में बौधिकता प्राप्त करने के बजाय प्रायवेट स्कूलों में भोतिकता की ज्यादा मांग है|तभी हर साल इनके फीस की दर का ग्राफ १५% तक बड़ जाता है|एल के जी से लेकर मात्र पहली कक्षा तक में दाखिले के लिए सीटों के मुकाबले १० गुना आवेदन आ जाते हैं|यहाँ तक की एल के जी में दाखिला दिलवाने को नन्हें मुन्हों परटूशन का भार भी अविभावक डाल देते हैं| इन स्कूलों में खेल के मैदान भी नहीं होते| टीचरों की तन्क्वाह भी सरकारी से बेहद कम होती है|फिर भी इनका क्रेज़ रहता है|अब ऐसे शिक्षण संस्थान अपने यहाँ २५%गरीब और वंचितों को दाखिला देंगे यह सोच कर ही हसीं आती है|
3 comments:
हंसी की बात है तो हंसी तो आएगी ही , चलो सोच-सोच कर हंसते रहिए...गरीब बच्चों के साथ
ओ दिन डुबा जद घोडी चढ्या कुबा....
...प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!
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