Friday, October 30, 2009

इंदिरा गांधी का स्मरण +नमन+श्रधासुमन ३१ओक्तूबर


पहली बार सरकार खोने के बाद एक बार प्रियदर्शनी मेरठ से होकर गुजरी खुली जीप में [एक दम] तनी हुई उन्हें देखने मात्र को मेरठकालेज के बाहर विशाल भीड़ सड़क के दोनों और कतार लगाए थी कोई भाषण नहीं \ कोई नारा नहींसमर्थक +विरोधी+श्रोता+दर्शक यहाँ तक मुख्य आकर्षण भी मौन इस मौन भाषा में सभी कुछ कह दिया गयाइंदिरा जी की विशाल आँखे अपना कसूर पूछ गयी और दर्शकों ने अपना कसूर स्वीकारा चुनावों में करारी हार के बावजूद [l.k.advaaniki tarah]हताशा की बजाए आत्म विश्वाश +दुबारा ज़ंग लड़ने का जज्बा ज्यादा था.इसके बाद चुनाव फ़िर हुए मगर जनता पार्टी के बजाए कांग्रेस [इंदिरा कांग्रेस] को पुनः सत्ता [जनता जनार्दन ने]सौंप दी गई

हमारा परिवार मुल्क विभाजन के बाद से ही जनसंघ के प्रति उदारवादी रहा है मगर तत्कालीन जनता पार्टी के एक घटक के रूप में चुनावी समर में उतरी जनसंघ के प्रति कोई लगाव नही दिखा

आश्चर्यजनक रूप से जब मेरी पत्नी वोट डाल कर आई तो मुझे विशवास था की यह तो परिवार की परम्परा का निर्वाह कर के ही आई होगी मगर घर में घुसते ही उसने कहा मै तो इंदिरा को वोट डाल आई आप ने किसे वोट दिया

उस समय में मौन सभ कुछ कह रहा था

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

:(

BK Chowla, said...

Yes every individual must follow the democratic principles.

Urmi said...

बहुत ही बढ़िया और सही बात लिखा है आपने! इंदिरा गाँधी जी को शत शत नमन!