Friday, February 24, 2012

राजनितिक मृगत्रिशना में पंजाबी समाज बिखराव की स्थिति में आ गया है।

उत्तर प्रदेश की विधान सभा के लिए कराये जा रहे चुनावों के ५ चरण पूर्ण होने को हैं सभी राजनितिक  दल अपने अपने वोट बैंकों के असंतुष्टों को रिझाने में दिन रात एक कर रहे हैं।मेरठ जिले की तीन सीटों पर [शहर+कैंट+दक्षिण]में पंजाबी वोटें प्रभावी हैं ।दावा किया जा रहा है की यहाँ सवा लाख से ज्यादा पंजाबी वोट  हैं।इसीलिए भाजपा +कांग्रेस+और बसपा पंजाबी वोटों को रिझाने में जुटे हैं। चूँकि यूं पी में पंजाबियों का कोई करिश्माई नेता नहीं है इसीलिए अब राजनितिक  मृगत्रिशना में  पंजाबी समाज बिखराव की स्थिति में आ गया है।
       सबसे ज्यादा पंजाबी वोट कैंट छेत्र में हैं।एक अनुमान के अनुसार यहाँ ४०००० पंजाबी वोट हैं\ यहाँ की परम्परा के अनुसार अभी तक  बड़ी संख्या में पंजाबियों का झुकाव भाजपा की तरफ ज्यादा रहा है।शायद यही कारण है की वर्तमान  भाजपा के विधायक चुनावी  हेट्रिक करने के इरादे से चुनाव में ताल ठोंक रहे हैं।यहाँ वैश्य और पंजाबी समाज की युगल बंदी से सभी खौफ जदा रहे हैं।पिछले कुछ समय से पंजाबी राजनितिक चेतना के चलते तीन में से एक सीट पंजाबी उम्मीदवार के लिए माँगी जाती रही है मगर भाजपा की उपेक्षा के चलते पंजाबी आज भाजपा से निराश है।कांग्रेस के रमेश धींगरा ने प्रदेश में पंजाबियों को एकजुट करने को पंजाबी संगठन बनाकर इनमे एक राजनितिक चेतना पैदा की शायद यही कारण है की आज पंजाबी समाज प्रमुखता से सत्ता में हिस्सेदारी की मांग कर रहा है।
         यूं तो कांग्रेस के पूर्व मंत्री [स्वर्गीय]सरदार अजित सिंह सेठी के नाम यहाँ हेट्रिक है।मगर उस समय  सिख+पंजाबियों के साथ मुस्लिम +  ईसाई+पिछड़े और दलित सहयोग भी था मगर समय के साथ यह सहयोग कम होता गया अब बेशक उनके पुत्रों ने कांग्रेस की कमान संभाल रखी है मगर अंशकालिक समर्पण का लाभ भी इसके अनुरूप ही होता है।रमेश धींगरा  यहाँ से ४०००० वोट  लेकर भी भाजपा से पिछड  गए क्योंकि उस समय जाटों  के नेता अजित सिंह का चुनावी गठजोड़ भाजपा के साथ था और जाटों की वोट से भाजपा जीती।
       अब  अजित सिंह का चुनावी गठ जोड़   कांग्रेस के साथ है ।मुस्लिम भरोसा भी कांग्रेस की तरफ लौटने लगा है ।पंजाबी संगठन के अध्यक्ष होने के साथ ही रमेश  का साथ दलितों  से भी रहा है । गोर तलब है की दलित+पिछड़े   बहुल  इलाके से अपने गैर राजनितिक भाई को  छावनी परिषद् का सदस्य बनवा कर रमेश अपना वजूद दिखा चुके हैं।इसीलिए कहा जा  रहा है कि अगर कांग्रेसी नेता ने अपने कार्ड्स सही फैंटे तो अपनी खोई विरासत को पुनः पा सकते हैं\ स्थिति बदल सकती है।
      बसपा के सुनील वाधवा के लिए लड़ाई अब आसान हो गई है इस इलाके में दलित वोट बढ गया है  छावनी में अपनी पत्नी को सभासद बनवा कर और अपनी पसंद का उपाध्यक्ष  वणवा चुके हैं। बेशक दलितों का वोट वैश्य और पंजाबी के बाद तीसरे नंबर पर है मगर पर्वतांचल +पूर्वांचल+के साथ ही इसाई वोटों का भी सहयोग का दावा किया जा रहा है
      बेशक वैश्य वोते यहाँ सबसे अधिक हैं और 'पिछाले चुनावों में यह सिद्ध भी हो  चुका है मगर भाजपा के वैश्य  कार्ड पर कई  प्रशन चिन्ह लग रहे हैं। पंजाबी निराशा और वैश्य उपेक्षा के चलते सत्यप्रकाश अगरवाल के लिए जमीन कठोर होती जा रही है।
    शहरी इलाके में सीधे मुस्लिम और हिन्दू के नाम पर वोटिंग होते आई है और वहां वर्तमान में मुस्लिम वोट को बडत हासिल है।इसीलिए भाजपाई  पंजाबिओं को साथ लाने के लिए सभे उपाय कर रहे है ।दक्षिण की सीट के लिए भाजपा को वोट देना पंजाबियों की मज़बूरी है\
     यह चुनाव कोई भी जीते मगर एक बात तो तै हो गई है कि कांग्रेस ने अपने पारम्परिक  मुस्लिम+दलित+इसाई वोट को किसी हद तक अपने साथ जोड़ ही लिया है।बसपा ने भी पंजाबी भरोसा कुछ हद तक हासिल कर लिया है और इनका लाभ संसद के लिए होने वाले चुनावों में इन्हें जरूर मिलेगा   

No comments: