Sunday, September 20, 2009

एयर इंडिया को अप्रत्याशित [अप्रत्यक्ष]बेल आउट पकेज

यूं.पी.ए.सरकार ने उदयनउद्योग में यूं टर्न लेते हुए एयर इंडिया मे ही सरकारी सवारी को सरकारी नौकरों के लिए अनिवार्य कर दिया हैअब लीव ट्रेवल कंसेसन या सरकारी दोरों पर जाने के लिए एयर ट्रेवल करने के पात्र वायु यान से सफर तो कर सकेंगे मगर उन्हें केवल एयर इंडिया का ही उपयोग करना होगाअरबों के घाटे में फंसी एयर इंडिया के लिए ये एक इनडाईरेकटली बेल आउट पकेज ही हैलेकिन दूसरे एयर ट्रेवल अजेंसीस द्वारा अपने सरमायेदारों औरशेयर होल्डरों की तिजोरी को खाली करने की रफ़्तार को अक्स्सीलारेटर और थोडा दब जाएगाइससे पूर्व कुछ समय के लिए ही सही दूसरी अजेंसीस को इस्तेमाल भी एलाऊ कर दिया गया नए वेतन आयोग से एयर ट्रेवल के लिए सुपात्रों की संख्या में भी इजाफा हुआ हैआनन फानन में सभी ने अपने हवाई बेडे बड़ा लिए मंदी का ऐसा दोर आया की सभी अरमान धरे के धरे रह गए खर्च कम करने के नाम पर स्टाफ छटनी का दाव उलटा पड़ गयासरकार से बेल पकेज के नाम पर उगाही टल गयी
एयर इंडिया को बचाने के लिए सरकार ने बैक डूर से यह सहायता प्रदान कर दी हैइस कदम की आलोचना करना मकसद नही है क्योंकि सहायता के अभाव में अमेरीका के लेहमन ब्रदर्स का परिणाम सबके सामने हैइस सम्बन्ध में ये कहना भी जरूरी है की एयर इंडिया की मॉनीटरिंग का आज भी अभाव है और इसके चलते किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष बेल आउट पकेज ऊंट के मुँह में जीरा ही साबित होगाअपने इस कथन के समर्थन में यहाँ १९९२०० ९ का ताजा उदहारण देना चाहूंगा कोलकता के नेता जी सुभाष चन्द्र बोस एयर पोर्ट पर २५ सवारिओं को जहाज पर सवार होने नही दिया गया२० और २१ तारीख के अवकाश के चलते पोर्ट ब्लेयर जाने के इछुक यात्रिओं को अ ३२० फ्लाईट के लिए १४५ टिकेट्स कन्फर्म किए गए सभी तयार होकर पोर्ट पर आए मगर वहाँ उनके ख़्वाबों को धोते हुए बताया गया की फ्लाईट अ ३१९ उपलब्ध है जिसमे केवल १२२ सीटें ही है १२ यात्रिओं को दूसरी एयर लाइन से भिजवा कर डैमेज को कंट्रोल करने का प्रयास किया गया मगर १३ को अगले दिन आने को कहा गयाइससे बात खुल गयी और मीडिया में आ गयीऐसे प्रबंधकों के लिए जिम्मेदारी तय होनी लाज़मी हैक्योंकि अगर नौकरी+बेल आउट पकेज का हक है तो अछाप्रबंधन उपलब्ध कराने का दाईतव भी
स्वीकारना होगा

5 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

एअर इंडिया का क्या हो सकता है...करोड़ों रूपये आज भी "नमस्कार" और "स्वागत" जैसी अथाह महंगी पत्रिकाओं पर बहाया जा रहा है..., घाटे की तरफ धकेल कर इसे बेचने की तैयारी हो रही है... कोई पूछने वाला नहीं...जबकि दूसरी तरफ़ कामगारों की तनख़्वाह काटने के बस बहाने ही ढूंढे जा रहे हैं.

jamos jhalla said...

काजल जी आपने सही चेपा है
मितव्यतता का इलाज़
केवल इकोनोमी क्लास में
सफ़र ही नहीं है कम खर्च
बाला नशीं वाला फार्मूला ठीक रहेगा

Everymatter said...

all the free services being given to politicians and big bureaucrats/officers must be stopped immediately

jamos jhalla said...

Yes this is the main reason for which this kind of units are getting back door benefits

mark rai said...

.. नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ..this is economy class...