एयर इंडिया को बचाने के लिए सरकार ने बैक डूर से यह सहायता प्रदान कर दी हैइस कदम की आलोचना करना मकसद नही है क्योंकि सहायता के अभाव में अमेरीका के लेहमन ब्रदर्स का परिणाम सबके सामने हैइस सम्बन्ध में ये कहना भी जरूरी है की एयर इंडिया की मॉनीटरिंग का आज भी अभाव है और इसके चलते किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष बेल आउट पकेज ऊंट के मुँह में जीरा ही साबित होगाअपने इस कथन के समर्थन में यहाँ १९९२०० ९ का ताजा उदहारण देना चाहूंगा कोलकता के नेता जी सुभाष चन्द्र बोस एयर पोर्ट पर २५ सवारिओं को जहाज पर सवार होने नही दिया गया२० और २१ तारीख के अवकाश के चलते पोर्ट ब्लेयर जाने के इछुक यात्रिओं को अ ३२० फ्लाईट के लिए १४५ टिकेट्स कन्फर्म किए गए सभी तयार होकर पोर्ट पर आए मगर वहाँ उनके ख़्वाबों को धोते हुए बताया गया की फ्लाईट अ ३१९ उपलब्ध है जिसमे केवल १२२ सीटें ही है १२ यात्रिओं को दूसरी एयर लाइन से भिजवा कर डैमेज को कंट्रोल करने का प्रयास किया गया मगर १३ को अगले दिन आने को कहा गयाइससे बात खुल गयी और मीडिया में आ गयीऐसे प्रबंधकों के लिए जिम्मेदारी तय होनी लाज़मी हैक्योंकि अगर नौकरी+बेल आउट पकेज का हक है तो अछाप्रबंधन उपलब्ध कराने का दाईतव भी
स्वीकारना होगा
5 comments:
एअर इंडिया का क्या हो सकता है...करोड़ों रूपये आज भी "नमस्कार" और "स्वागत" जैसी अथाह महंगी पत्रिकाओं पर बहाया जा रहा है..., घाटे की तरफ धकेल कर इसे बेचने की तैयारी हो रही है... कोई पूछने वाला नहीं...जबकि दूसरी तरफ़ कामगारों की तनख़्वाह काटने के बस बहाने ही ढूंढे जा रहे हैं.
काजल जी आपने सही चेपा है
मितव्यतता का इलाज़
केवल इकोनोमी क्लास में
सफ़र ही नहीं है कम खर्च
बाला नशीं वाला फार्मूला ठीक रहेगा
all the free services being given to politicians and big bureaucrats/officers must be stopped immediately
Yes this is the main reason for which this kind of units are getting back door benefits
.. नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ..this is economy class...
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