Saturday, June 6, 2009

माल रोड से ठंडी सड़क का खिताब छिनने के आसार

५६२००९ को जब पर्यावरण पर लेख लिखे जा रहे थे ,सभाएँ हो रहीथी,करोड़ों रुपयों के विज्ञापन छापे जारहे थे उस समय मै भी तपती माल रोड पर गरमी झेलता हुआ व्यवस्था को कोसता पर्यावरण के सुधरने की कामना करके इस दिशा मे अपना योगदान अर्पित कर रहा था
देश की लगभग ६० छावनियों मे मेरठ की छावनी और यहाँ की माल रोड का अपना विशेष महत्त्व हैयहाँ की माल रोड को कभी ठंडी सड़क का खिताब हासिल था शहरवासी गरमी के मौसम में भी यहाँ सैर करने आते थे और सुकून पाते थेइस सड़क पर पानी का छिर्काव किया जाता थासड़क के दोनों तरफ़ छाया दार पेड थे माल रोड तक पहुचाने वाली सड़कें भी फलदार वृक्षों से भरी थी
जंगल जलेबी ,इमली ,कैथा ,कमरक,जामुन ,करोंदा ,बेलआदि बच्चों के साथ साथ बड़ों के लिए भी चुम्बकीय शक्ति रखते थेसेना ओर सेना से जुड़े कार्यालयों के वरिष्ट अधिकारिओं की कोठियों मे भी पदों की भर मार होती थीछावनी के आस पास के छेत्र में भी हरयाली थीइससे पर्यावरण इतना अच्छा था की लगातार दो दिन गर्मी पड़ने पर तीसरे दिन वर्षा का होना लाजमी था
धीरे धीरे पेड कटने लगे, खेत ,बाग़ ,कोठियां गायब होने लगे
खेतों ,बागों, की जगह कालोनियां, कोठियों में फ्लैट्स बनगएजिस माल रोड पर भारी वाहनों के पलायन पर रोक थी इस माल रोड पर दिन रात किसी जी .टी .रोड का नज़ारा दिखायी देता हैमाल रोड पर छिर्काव बंद हो गया छावनी परिषद् और सेना के वाटर बोसर घरों में पानी की ढुलाई करते रहते हैं कुछ समय के लिए माल रोड का एक हिस्सा वाहनों के लिए बंद करके मोर्निंग तथा इवनिंग वाकर्स को राहत दी जाती हैमगर दुर्भाग्य से इस अवधि में भी वाहन देखे जा सकते हेंये वाहन अधिकारिओं के अधिक होते हैंजंगल जलेबी, करोंदा कमरक और कैथे का स्वाद तो दूर इसके आकार से भी आज के बच्चे अनजान हैं
इस सब के चलते पर्यावरण को हानि हो रही हें और माल रोड का ठंडी सड़क वाला खिताब भी खटाई में पड़ता नज़र आ रहा है

8 comments:

राज भाटिय़ा said...

अजी यह सब तरह हो रहा है, सिर्फ़ पेड काटने से सूंदरता नही बढती, बलकि सुंदरता घटती है, ओर अब इस माल रोड को गर्म सडक का नाम देदो.
हो सके तो इस Word Verification को हटा दो मेहरबाणी होगी.

कडुवासच said...

... sahee kahaa ... samay ke saath bahuta kuchh badal rahaa hai !!!!

Urmi said...

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बिल्कुल सही फ़रमाया आपने! वक्त के साथ हर चीज़ बदल जाता है! आजकल तो जहाँ भी देखती हूँ कोंकृत का जंगल बना दिया जा रहा है है क्यूंकि बढती आबादी के कारण पैर पौधे काट दिए जा रहे हैं और इसी वजह से खूबसूरती कम होती जा रही है!

Everymatter said...

it not only a problem only in meerut but in many cities where the good climate/environment condition changed and declining every day

previously the farming land is now group housing society/colony, etc.

i think after 5-6 decades who have nothing neither farming land nor good trees

some fruits/local vegetables lost in revolution of modern era.

Amit said...

THANDI SADAK AB SIRF NAAM KE LIYE REH GAYEE HAIN THANDI TO VO THAND KE DINO MAIN BHI THANDI NAHIN HOTI HAIN ? THAND KE LIYE TO AC HAIN NA ... VOLTAS KA AC LAGAO BIJLI BACHAO ( AS SEEN ON ADS ) AAP KI BIJLI KI SAMSYA BHI SOLVE AUR THANDI SADAK KA ANAND BHI LO ....
AMIT-DIAMOND

sm said...

Today humans are cutting trees, but this is nature when nature will strike it will cut the humans to complete the cycle.

i agree with Raj If possible remove word verification .

mark rai said...

kaphi achchha lekh hai..aapki chinta waajib hai..future me bahut kuchh badlne wala hai...

मस्तानों का महक़मा said...

logo kI soch badlegi, jeene ka tarika badlega or badlegi jagah... or yahi badlaw chahta hai shayad humara sheher.

aapne badi hi khubsoorti se chizo or mahol ko likha hai.