Sunday, May 10, 2009

१० मई १८५७ के शहीदों को उचित सम्मान दें

१० मई का दिन एक अमूल्य निधि के रूप में हमें विरासत के रूप में मिला हेइसे न केवल हमने संभाल कर रखना है वरन अगली पीडी को सही मायनों में सौपना भी हे१० मई १८५७ को तत्कालीन अँगरेज़ शासकों के विरूद्व भारतीय फौजिओं ने शस्त्र उठा कर क्रांति का बिगुल बजाया था
इतिहास कारों के अनुसार इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जो सबसे बड़े सबक मिले दुर्भाग्यवश उन्हें आज़ादी के बाद की सरकारों और समाज ने महत्वपूर्ण नही समझा इस क्रान्ति का इतिहास हमें बताता हे कि
[1]हिन्दू और मुस्लिम ,ब्रह्मण मंगल पांडे ,बाल्मीकि मातादीन ,गुज्जर धन्ना सिंह कोतवाल और हजारों जाट ठाकुर एक ही काज के लिए इख्ठा लड़े और देश के लिए शहीद हुए शासकों कि क्रूरता के चलते हजारों देशभक्तों के शव कई दिनों तक पेड़ों पर लटके रहेगाँव के गावं जला दिए गए शहीदों कि आत्मा कि शान्ति के लिए धर्मा नुसार क्रियाक्रम भी नहीं हुएइसे विडंबना ही कहा जाएगा कि शहीदों के नाम पते तक किताबों में दर्ज नहीं हे
[२] यध्पि इस क्रान्ति को निर्ममता से दबा दिया गया था फिर भी आज़ादी कि जंग में यह क्रांति एक चिंगारी बनी जिससे प्रेरणा पा कर बाद में आज़ादी के मतवालों ने ब्रिटिश हकुमत को उखार फैंका
[३]ब्रिटिश फौज में एन.टी। [नेटिव]और बी.टी.[ब्रिटिश]कंपनियाँ थी नेटिव फौज का विवरण तो मग्निफायिंगग्लास लेकर भी नहीं मिलता हाँ मारे गए ब्रिटिश अधिकारिओं को सैंट जॉन कब्रिस्तान में दफनाया गया जहाँ उनकी कब्रों के अवशेष अभी तक हेये लोग एन.टी.फौज के हाथों मारे गए थे
[४]एक तत्कालीन जनरल जिलिपसी जिन्होंने नेपाल के चुंगल से इस चेत्र को आजाद करवाने के लिए गोरखों से यूद्ध किया था उनकी भव्य कब्र भी हे
इस क्रान्ति के कुछ निशाँ अभी भी कायम हे मगर शाषन प्राशाशनऔर प्रबुद्ध नागरिकों कि उपेक्षा के चलते लगातार जर्जर होते जा रहे हे
झल्ले विचारानुसार क्रान्ति कि इस धरोहर को बचा कर या संजोने के लिए निम्न कदम उठाए जा सकते हे
[१]१० मई १८५७ कि क्रान्ति के शाहीदों कि आत्मा कि शान्ति के लिए सामूहिक रूप से प्राशाशन और जनता द्वारा सर्व धर्म क्रिया करम करवाए जाने चाहिएइससे न केवल उनकी आत्माओं को शान्ति मिलेगी वरन देश में साम्प्रदायिक सौहार्द [जिसकी आज बेहद जरूरत हे]कायम होगासभी धर्म वर्ण जाति के लोगों में सौहार्द कायम होगा [इसकी भी आज बेहद जरूरत हे]
[२]सैंट जॉन कब्रिस्तान के साथ साथ १०मै १८५७ के साथ जुडी इमारतों, स्थानों का टूरिस्म के नज़रिए से रख रखाव किया जाना चाहिए इससे प्राप्त आय से भवनों का रखरखाव करने में आसानी होगी
[३]१० मई को मेरठ में लोकल अवकाश होता हे इस दिन कुछ लोग छोटा मोटा कार्यक्रम आयोजित करते है और प्रशासनिक प्रभात फेरी निकाली जाती हे इन सभी को मात्र ओउप्चारिकता ही कहा जाता हेबिना किसी अहम् या प्रेस्टीज ईशु के कमसे कम समूचे मेरठ के सभी धर्म जाति या वर्ण के लोगों को शामिल किया जाना होगा

7 comments:

hempandey said...

आज का दिन १८५७ की क्रान्ति के लिए जाना जाता है, यह आपकी पोस्ट से ज्ञात हुआ. वैसे तो मातृ दिवस की ही धूम दिखाई दे रही है. यह भी अफ़सोसजनक है कि राष्ट्रीय महत्त्व का यह दिन केवल मेरठ में ही मनाया जाता है. .

Urmi said...

आपकी सुंदर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
मैं इस बात से वाकिफ नहीं थी कि १८५७ क्रांति के लिए जाना जाता है! धन्यवाद आपके पोस्ट के दौरान हमें इस बात कि जानकारी हुई! अच्छा लगा आपका पोस्ट!

Everymatter said...

i am surprised to know that the name & address of freedom fighters are not in the record

its shame for us

Randhir Singh Suman said...

aapne acchi jaankaari di. is tarah ki jaankaari aage bhi dete rehne ki aavshyakta hai.

suman
loksangharsha

Harshvardhan said...

is sundar jaankari ke liye aapka aabhaar

sm said...

yes i agree with you,its sad,
but problem is that this 1857 was a start of freedom fight many people dont agree with it .

jamos jhalla said...

no doubt 1857 was a start and every starter should be given due credit.
there may be few who disagree with but such spasmodic species are in every field.