Tuesday, March 10, 2009

विकसित देशों की चकाचोंध के सम्मोहन से राष्ट्र बचाओ

viksit देशों में आई मंदी की सुनामी के फलस्वरूप भारत में भी स्लो डाउन का दानव नित अपना स्वरुप बढ़ा रहा है युवा प्रतिभाओं की नौकरियां लीलने को अपनी जीव्हा लपलपा रहा है \ इससे देश के भविष्य को निराशा ,अवसाद का ग्रहण लग रहा है \दुर्भाग्य से जनसेवक ,समाजसेवक,उधमी और मीडिया तक इसे रास्ट्रीयमुद्दा बनाने के स्थान पर अन्यत्र ही बिंधे हैं\ अमेरिका और ब्रिटेन के मुकाबिले बेशक हमारे यहाँ आर्थिक पतन की गति धीमी है मगर यह भी सत्य है की २५ लाख रुपयों तक लोन उठा कर विदेशों में एम् बी ऐ आदि करने गए मेधावी छात्रों के भविष्य पर बेरोजगारी की कालिमा छाने लगी है \विदेशों से विदेशी मुद्रा भेजने वाली प्रतिभाओं का लौटना प्रारम्भ हो गया है \हमारे देश में भी आक्र्क्शक नौकरियों पर कटौती की तलवार लटक रही है चुनावों के बाद तो इस संकट के और गहराने की स्वाभाविक आशंका व्यक्त की जा रही है \टाटा समूह को देश का सबसे विश्वसनीय व्यव्सायिक संघठन माना जा रहा है लेकिन दुर्भाग्य वश इसकी एक ईकाई से भी हजारों तेक्नोक्रट्स की नौकरी जाने की आशंका जतायी जा रही है \ के वी कामथ और मुकेश अम्बानी सरीखे अग्रिम पंक्ति के सेलेब्रेटी यह दावा कर रहे हैं किदेश कि आर्थिक विकास कि दर वृधिकि और है\ देश विश्व को रास्ता दिखायेगा अर्थात आर्थिक संकट के मौजूदा संकट से उभर जायेंगे\ वास्तवमें सत्यम ,विप्रो आदिनामी गिरामी के खोखलेपन ने इस दिशा में विकास के सभी दावों पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है लेहमन बैंकके पतन के बाद ना चेतने वाले अमेरिकन बैंक ,फ्रीडम बैंक ऑफ़ जार्जियाका दर्दनाक पतन ने वेस्टर्न सोच को कठघरे में ला खडा किया\ हमारी विकास कि दर को ११ % से घटा कर मात्र ५%पर धकेल दिया \पर्यावरण के लिए गिद्धों को बचाना जरूरी हो सकता है इस तर्ज पर कंपनियों के सी ई ओ रूपी गिद्धों को भी संरक्षण मिल रहा है दोषी पालिसी मेकर उजले बने हुए हैं \अमेरिकी डॉलर के मुकाबिले भारतीय करंसी केअल्पकालिक अवमूल्यन के चलते विदेशी डॉलर की आमद तत्काल बंद करने वाले जनप्रतिनिधि अपनी निधि को पूरा खर्च करने और बज़ट मैं निर्धारित कार्यक्रमों को पूरा कराने मैंभी अक्षम साबित हो रहे हैं \शायद येही कारण है की नेताओं के जुगारुपण पत्रकारों की खबरों को गड़ने में व्यस्तता के कारण इस विकराल संकट के प्रति सच्ची सजगता ,चौकन्नापन ,संवेदना का सर्वथा अभाव दिखाई दे रहा है ब्याज की ऊचाई और टैक्स की मार आम आदमी को निराश कर रही है \शायद येही कारण हैकी स्विस बैंकों मैं २००६ तक १४५६ अरब dolar का भारतीय पैसा अभी तक फंसा है \२००७में ही केवल ९०० करोड़ की घूस तक वसूली गयी \ झाल्लेविचारानुसार समय रहते ब्याज और टैक्स का बोझ कम नही किया गया ,काला धन बाहर नही निकाला गया ,रिसर्च एंड देवेलोप्मेंट पर विशेष ध्यान नही दिया गया टो वर्तमान विकास का रेट मात्र विकसित देशों की चका चोंध से सम्मोहित खोखली हंसी साबित होगी और हम सभी तुलसी दास जी का यह दोहा दोहराते रह जायेंगे लाभ समय को पालिबो ,हानि समय की चूक सदा विचारही चारुमती सुदिन कुदिन दिन दुक

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