Friday, February 13, 2009

गुरबत के मारों के लिए भी बहस हो सकती है क्या ?

ट्राफिक की बत्ती लाल होने के कारन कार चौराहे पर रुकते ही एक यूवक झटके से प्रगट हुआ और मैले कुछेले कपरे के एक छोटे से टुकरे से कार शीशे साफ़ करने लागा मेने बे खयाली में पाँच का सिक्का उसकी और किया उसने जैसे ही सिक्का लेने के लिए हाथ आगे किया तो हम दोनों की आँखे एक दूसरे से टकराई उसे देख कर मुझे जोर का शाक लगा उसने भी नजरें चुराली ट्रैफिक बत्ती हरी हो गई गाड़ी आगे चल पड़ी और में यादों के समुन्दर में गोते खाने लगा लग भग बीस साल पहले हमारी छावनी में एक हंसता खेलता संपन्न घराना था इस के मुखिया पार्षद भी थे उनके आठ बच्चे थे देशके विभाजन के बाद रिफ्यूजी बन कर यहाँ आए और पुरुषार्थी बन कर न केवल अपने पेरों पर उठे वरन यश भी कमाया उसी परिवार का सबसे छोटा बेटा आज कार के शीशे साफ़ करने को मजबूर दिखा वक्त ने आसमान से उठा कर गुरबत के गद्दे में धकेल दिया ऐसे गुरबत के मारो को रिज़र्वेशन /आर्थिक सहायता /उचित मार्ग दर्शन इनमे से क्या मिलना चाहिए क्या यह बहस का मुद्दा हो सकता है

No comments: