Friday, December 17, 2010

वंचितों को खुद अलाव जलाने पड़ रहें हैं क्यूं?

सरकारी अलाव कॉ इंतज़ार छोड़ो खुदेई आग जला लिए हैं आ जाओ 
सर्द हवाएं दस्तक देने लगी हैं  वंचितों के जिस्म ठिठुरने लग गए हैं | संसद कॉ शीत कालीन सत्र सरकार और विपक्ष की ठंडी सोच की भेंट चढ़ गया है\  मीडिया के कैमरे भी फिजाओं को कैद करने लग गए हैं |भारतीय  ट्रेने लेट होने लग गई हैं|फोजिओं की गर्म वर्दी निकल आई है|  पोलिस के सिपाहियों को गर्म जेकेट बांटी जा रही है| स्कूली  बच्चे तक वंचितों में  कम्बल बांटने लगे हैंदुर्भाग्य से मेरठ के पॉश गंगानगर में रहने वाले  सेकड़ों  मेहनतकशों तक  सरकारी अलाव की आंच भी नहीं है  सरकारी हीटरों +एयरकंदिशनर के लाभार्थियो  तक इनकी ठिठुरन की पहुँच नहीं है शायद ये वंचित हैं असंघटितहैं  बाहर के हैं |   |मेहनत कशअपने दो  परिवारों के पेट  भरे  या  बाज़ार से इंधन खरीदकर हाथ तापे|इसी लिए घास फूस के साथ साथ पेड़ों को काटना  भी उसकी मजबूरी है  | प्रदेश की महत्वाकांक्षी  सी.एम्. दिल्ली में  बाहर वालों का समर्थन कर रहीं है |उनके अपने प्रदेश  में  विकास की रफ़्तार  बढाने वाले स्थानीय और बाहर  से आए  झोपड़ों या खाली प्लाटों  में रहने वाले मजदूरों   को  खुद अलाव जलाने पड़ रहें हैं  क्यूं ?कयूं?क्यूं?

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

इन नेताओ के बंगले पहले जल जाये गरीब तो अपना गुजारा कर ही लेगा जी. धन्यवाद