कहने को यहाँ छेत्र वासियों द्वारा चयनित बोर्ड है मगरइनमे व्याप्त उपरोक्त १ और २ बुराइयों के कारण ही समस्त सत्ता सेना के मनोनीत अधिकारियों के हाथ में है|यही कारण है की केंट में अगर सेना कॉ कोई बड़ा अधिकारी आता है तो उसके स्वागत में छोटे मोटे गड्डे भी भर दिए जाते हैं |स्पीड ब्रेकर्स पर जेब्रा पेंट हो जाता है|नए नए साइन बोर्ड लग जाते हैं वरना तो प्रसिद्ध माल रोड पर भी गड्डों में से ही होकर गुजरना पड़ता है|इसके अलावा दशकों से केंट में रहने वाले लोगों के मकान की लीज़[२०१०-११मे समाप्त होने वाली] बढाने की कोई योजना नहीं बनाई गई है| टेक्स अंधाधुन्द बढाए जा रहे हैं|आवासीय समस्या मुह बाय खड़ी है\यातायात अनियंत्रित होता जा रहा है जिसके फलस्वारूप सदर और अबुलेन पर फैलाव बढ़ता जा रहा है और स्थ्तिती फटने की कगार पर पहुँच ने वाली है||फहले फूले हरे भरे पेड अंधाधुन्द काटे जा रहे हैं| जिसके कारण ठंडी सड़क माल रोड भी अब ठंडी नहीं लगती\
बोर्ड की नियत पर तो दशकों से सवाल उठाए जाते रहे हैं जो अब तक जारी है|इसी कारण पहली ५ वर्षीय योजना के तहत बनवाये गए शिवाजी कालोनी के मकान आज तक भी अलोटीस को ट्रांसफर नहीं किये गए हैं उलटे सीधे हलफ नामे देकर किराया और बढाया जा रहा है
सेना को बेशक अपमे विस्तार के लिए केंट के आलिशान बंगलों की जरूरत होगी मगर इससे सेना और सिविल में मतभेद देश हित में नहीं कहे जा सकते|केंट के अन्दर आने के बजाये केंट के बाहर की और सेना कॉ रुख किया जाए तो सबके लिए हितकर होगा\
1 comment:
इसे कहते हे अंधेर नगरी जी
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