Sunday, March 14, 2010

मानवीय संवेदनाएं अभी ज़िंदा हैं|


 मानवीय संवेदनाएं इस भौतिकवादी इस दौर में  तो बैमानी हो चली है|लेकिन गाहे बगाहे कुछ ऐसा घट  जाता है जिससे  यह बैमानी भी नामी लगने लगती है|मेरे परिवार में भी १२-०३-२०१० की सुबह कुछ ऐसा ही  घटा जिसने मुझे भी सकारात्मक सोचने को मजबूर कर दियाहै|
          १२ मार्च की सुबह कालेज के लिए बस की इंतज़ार कर रहे नितिन [छोटा पुत्र]को तेज़ रफ़्तार में [हरिद्वार से]  आती इन्नोवा ने रोंग साइड पर जा ठोक दिया जख्मी को  तरपता छोड़ कर गाडीवान भाग निकला
         [१]  लहूलुहान को को जब कोई हाथ लगाने को तैयार नहीं था तब २ फरिश्तों ने टेम्पो रुकवा कर घायल को नजदीक के नर्सिंग होम पहुचाया|
          [२]एक ने पोलिस को फोन किया और पोलिस ने भी घटना  फ्लेश करके भगोड़े चालक को गाडी सहित पकड़ लिया|
           [३]नर्सिंग होम में डाक्टर्स ने तत्काल चिकित्सा मुहय्या करवा कर  घायल को सम्भाला|
            [४]गाडी वाले के माता पिता+बंधू बांधव नर्सिंग होम में घायल को देकने आए|और अपना अफ़सोस +खेद व्यक्त किया|    [५]आश्चर्यजनक रूप से पोलिस के दरोगा भी २ बार मरीज़ का हाल जान्ने आए|
           [6]शहर की मीडिया ने भी घटना को निष्पक्ष हो प्रमुखता से छापा|सबकी शुभकामनाओं +बुजुर्गों के आशीर्वाद++इश्वर की कृपा से अब बच्चा स्वास्थ लाभ कर रहा है|
            इस दिल को झकझोड़ने वाली घटना ने मुझे यह मानने को मजबूर कर दिया है की मानवीय संवेदनाएं अभी ज़िंदा हैं|

6 comments:

राज भाटिय़ा said...

आप का बच्चा कुशलता पुर्वक है, भगवान का शुक्र, ओर जल्द ही ठीक हो कर घर आये, लेकिन उस गाडी चालक को सबक सिखाना बहुत जरुरी है, चाहे उस के मां बाप दस बार हाल पुछने आये, क्योकि अगर वो गाडी चालक इस बार बच गया तो अगली बार किसी ओर को फ़िर से ठोकेगां..... तो आप अब अपने धर्म का पालन जरुर करे, तभी इन्लोगो को अकल आयेगी, बच्चे के लिये बहुत शुभकामनाये

jamos jhalla said...

Thanks bhatia ji

कडुवासच said...

...आपकी बात से सहमत, मानवीय संवेदनाएं जिंदा हैं ....स्वास्थ्य लाभ हेतु शुभकामनाएं !!!

Urmi said...

आपके बेटे का कोई दोष न होते हुए भी इतनी बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गया है! भगवान का लाख लाख शुक्र है और वो फ़रिश्ते भगवान के रूप में आकर आपके बेटे की जान बचाया और उन्हें तुरंत अस्पताल में दाखिल किया ! जब वो गाड़ी चालक पकड़ा गया है तो उसे सबक सिखाना ही चाहिए ताकि इस तरह से बेपरवाही से कभी गाड़ी न चलाये! सबसे बड़ी बात तो ये है कि ख़ुद गाड़ी चालक की गलती है और उसने आपके बेटे को ज़ख़्मी हालत में छोड़कर दुम दबाकर भागा! ये तो अच्छा हुआ कि पुलिस ने सही वक़्त पर उसे पकड़ा! आप चिंता मत कीजिये और हिम्मत मत हारिये! मैं भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि आपका बेटा बहुत जल्द स्वस्थ हो जाए और सही सलामत घर वापस आ जाए!

jamos jhalla said...

श्याम जी बबली जी धन्यवाद

Anonymous said...

"मानवीय संवेदनाएं अभी ज़िंदा हैं"
जी बिलकुल हैं और शायद हमेशा रहेंगी लेकिन ऐसे इंसानों की संख्या कम है और वक्त के साथ और भी कम होती जा रही है मेरा ऐसा मानना है. मैं बहुत देर से आया - आशा अब नितिन पूर्ण रूप से स्वस्थ होगा.