Sunday, April 25, 2010

शिक्षा में गुणवत्ता को महत्त्व देना जरूरी है


आज़ादी के बाद से ही  आज़ाद लोगों को १००%  शिक्षित करने को प्रयास चल रहे हैं लेकिन दुर्भाग्यवश इस दिशा में कोई दिशा तय नहीं की जा सकी है शायद इसी लिए आज भी १००%का लक्ष्य दूर है|गुणवत्ता हीन  शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशाँ लग रहे हैं |चंद अमीरों के हित और शेष को भूखों सुला रही यह  प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा    दिशा हीन ही कही जा रही है|
            आज़ाद हुए ६ दशक हो गए मगर  अभी भी देश भर में ३३%निरक्षर माने गए हैं|सबसे बड़े प्रदेश  यू.पी. में यह आंकडा  ३९% हे|शिक्षित लोगों को रोज़गार परक शिक्षा के स्थान पर लार्ड मेकाले की रटाऊ शिक्षा पद्दति पर ही पाला जा रहा है|शायद इसीलिए  बड़ी संख्या में ट्रेंड शिक्षक भी नौकरी के लिए लाइन में हैं|   
              ऐसा नहीं है की कुछ किया नहीं जा रहा वरन सरकारें समय समय पर  शिक्षा के हवं कुंद में यथा यौग्यआहुतिआन डालती आ रही हैं|बच्चों में  स्कूल के प्रति आकर्षण पैदा करने को मिडडेमील दिया जा रहा है| प्राथमिक शिक्षा के लिए सर्व शिक्षा अभियान और माध्यमिक शिक्षा के लिए रास्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान है|इसके अलावा पब्लिक स्कूलों की भरमार है|उच्च शिक्षा के लिए निजी छेत्र को खुली छूट है|विद्यालयों का विधुतिकरण हो रहा है| ६  से १४ वर्ष तक के बच्चो के लिए आवश्यक  अनिवार्य शिक्षा कर दी गई है|अब तो मानव संसाधन  विकास मंत्री काबिल सिब्बल विदेशों से भी विश्विद्यालय आयात कर रहे हैं|
           ९३%शिक्षा सरकार के पास  है इसीलिए सरकार [स्वभाविक ]  शिक्षितों  के आंकड़ों का ग्राफ ऊंचा करने की आपा धापी में ही रहती है|इसीलिए रोजगार परक+गुणवत्ता परक शिक्षा का सर्वथा अभाव ही दिख रहा है|आए दिन कहीं ना कहीं वेतन या एरियर आदी को लेकर शिक्षक और अपने अधिकारों के लिए छात्र हड़ताल पर रहते हैं | अविभावक भी शिक्षण संस्थाओं के प्रति असंतोष व्यक्त करते रहते हैं|शेष दिनों में मौसम की टेडी नज़र रहती है|
              शायद  इसीलिए स्कूलों से लेकर कालेज तक  में कोठारी आयोग की  ड्रॉप आउट  संख्या तो चिंताजनक है हीगुणवत्ता का भी अभाव है|इसी लिए नक़ल का बाज़ार मांग पर है| बुनियादी सुविधाओं के अभाव+ +शिक्षक छात्र  अनुपात में बड़े अंतर++ +प्राथमिक स्कूलों का ओउसत ४:::1 के बावजूद भी अगर पास भी हो गये तो कया होगा  सम्भवतः  इसी डर से  यू.पी.में ही पहले मात्र तीन दिनों में ही १०%से अधिक ने परीक्षा छोडी|हिन्दी के लिए लड़ाई में आगे रहने वाले इस प्रदेश में हिन्दी की आवश्यक परीक्षा छोड़ने वाले भी कुछ कम नहीं रहे| गुणवत्ता के अभाव में ही राजश्री टंडन मुक्त विश्व विद्यालय के ४३० केन्द्रों में से १५६ अध्ययन केंद्र निरस्त होने के कगार पर हैं|अब उच्च शिक्षा का स्तर का जायजा इस खबर से लगाया जा सकता है की प्रदेश में सर्वोच्च सेवा पी.सी.एस.के अभ्यार्थिओं में से ६००० अभ्यार्थी परीक्षा के लिए फ़ार्म ही नहीं  भर सके|नतीज़तन ६००० फ़ार्म निरस्त हो गए| 

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

३३% जी नही इस से भी ज्यादा होगी यह परतिशत, ओर सरकार गर चाहती तो इन ६० सालो मे देश मै एक भी अनपढ ना मिलता, लेकिन यह नेता खुद का पेट भर ले वो काफ़ी है... अब तो यह उम्मीद भी खत्म कि अगले ६० सालो मै भी लोग पढ लिख जाये, क्योकि अब शिक्षा एक धंधा बन गई है, ओर धंधे मै सभी कमाना चाहते है.
आप का धन्यवाद इस अच्छे लेख के लिये